History of Kangra District in Hindi – काँगड़ा जिला का इतिहास

History of Kangra District in Hindi

History of Kangra District in Hindi

जिले के रूप में गठन1 नवबर, 1966
जिला मुख्यालय धर्मशाला
जनसंख्या (2011 में)15,07,223
जनसंख्या   घनत्व (2011 में)263
कुल क्षेत्रफल5,739 वर्ग कि.मी.
साक्षरता दर (2011 में)86.49%
लिंग अनुपात1013
शिशु लिंगानुपात (2011 में)873
कुल गाँव3868 (आबाद गाँव – 3619)
ग्राम पंचायतें760
विकास खंड16 (काँगड़ा, नगरोटा बगवां, रैत, बैजनाथ, देहरा, भवारना, फ़तेहपुर, इन्दोरा, लम्बगांव, नूरपुर, पंचरुखी, सुलह, परागपुर, नगरोटा सूरीयां, धर्मशाला, बड़ोह)
विधानसभा सीटें15
लोकसभा क्षेत्र काँगड़ा
ग्रामीण जनसंख्या  (2011 में)14,20,864 (94.28%)
दशकीय जनसंख्या वृद्धि दर(2001-2011)12.56%
भाषाहिंदी, पहाड़ी
उप मण्डल14 (काँगड़ा, धर्मशाला, नूरपुर, देहरा, जयसिंहपुर, पालमपुर, बैजनाथ, ज्वाली, ज्वालामुखी, फ़तेहपुर, शाहपुर, नगरोटा बगवां, धीरा, इन्दोरा)
तहसील20 (काँगड़ा, नूरपुर, जवाली, इन्दोरा, देहरा, शाहपुर, बड़ोह, खुन्डियां, जसवां, रक्कड़, फतेहपुर, बैजनाथ, डाडासिबा, जयसिंहपुर, थुरल, धर्मशाला, मुल्थान, पालमपुर, ज्वालामुखी, नगरोटा बगवां)
उप-तहसील15 (धीरा, नगरोटा सुरियाँ, कोटला, गंगथ, हरिपुर, पंचरुखी, चढ़ीयार, आलमपुर, दरीनी, मझीन, भवारना, लगडू, प्रागपुर, हारच्कीयां, सुलह)
नगर पालिकाएं8 (नगर निगम : – धर्मशाला, नगर पंचायत :-  बैजनाथ-पपरोला, नगर परिषद :- कांगड़ा, जवालमुखी, देहरा, नगरोटा बगवां, नूरपुर, पालमपुर)

(i) भूगोल :-

  1. भौगोलिक स्थिति – कांगड़ा जिला हिमाचल प्रदेश के उत्तर-पश्चिम में स्थित है। काँगड़ा के दक्षिण में ऊना, हमीरपुर और मण्डी जिलें स्थित है। इसके पूर्व में कुल्लू और लाहौल-स्पीती, उत्तर में चम्बा तथा पश्चिम में पंजाब राज्य की सीमाएं लगती है।
  2. पर्वत श्रृंखलाएं – धौलाधार पर्वत श्रृंखला कुल्लू से होते हुए भंगाल क्षेत्र को पार करके काँगड़ा जिले में प्रवेश करती है। यह चम्बा के हाथिधार के समांतर चलती है।
  3. नदियाँ – व्यास नदी रोहतांग से निकल कर कुल्लू, मण्डी के बाद पालमपुर तहसील के संघोल से काँगड़ा में प्रवेश करती है। व्यास नदी नदौन से होते हुए मिरथल के पास काँगड़ा को छोड़कर पंजाब में प्रवेश करती है। देहर और चक्की खड्ड काँगड़ा और पंजाब की सीमा बनाते है।
  4. झीलें – काँगड़ा में डल, करेरी (प्राकृतिक) एवं पोंग (कृत्रिम) झीलें स्थित है।

(ii) इतिहास :

काँगड़ा जिले के इतिहास के लिए हमें काँगड़ा रियासत, गुलेर रियासत, नूरपुर रियासत, सिब्बा, दत्तारपुर, बंगाहर रियासतों का अध्ययन करना पड़ेगा। इन सबमें कांगड़ा रियासत सबसे प्रमुख है। जसवां और कुटलेहर रियासत हम ऊना जिले के अंतर्गत पड़ेंगे।

(क) काँगड़ा रियासत

काँगड़ा रियासत का प्राचीन इतिहास (Ancient History of Kangra Riyasat)

काँगड़ा प्राचीन काल में त्रिगर्त के नाम से मशहूर था जिसकी स्थापना महाभारत युद्ध  से पूर्व मानी जाती है। इस रियासत की स्थापना भूमि चंद ने की थी, जिसकी राजधानी मुल्तान (पाकिस्तान) थी। इस वंश (पीढ़ी) के 234वें राजा सुशर्मा ने जालंधर त्रिगर्त के कांगड़ा में किले की स्थापना कर उसको अपनी राजधानी बनाया।

  • त्रिगर्त का अर्थ – त्रिगर्त का शाब्दिक अर्थ तीन नदियों रावी, व्यास और सतलुज के बीच फैले भू-भाग से है। बाणगंगा, कुराली और न्यूगल के संगम स्थल को भी त्रिगर्त कहा जाता है।
  • जालंधर – पद्मपुराण और कनिंघम के अनुसार जालंधर नाम दानव जालंधर से लिया गया है जिसको भगवान शिव ने मारा था।
  • राजधानी – त्रिगर्त रियासत की राजधानी नगरकोट (वर्तमान काँगड़ा शहर) थी जिसे भीमकोट, भीम नगर और सुशर्मापुर के नाम से भी जाना जाता था। इस शहर की स्थापना सुशर्मा ने की थी। महमूद गजनवी के दरबारी उत्वी ने अपनी पुस्तक में इसे भीमनगर, फरिश्ता ने भीमकोट, अलबरूनी ने नगरकोट की संज्ञा दी थी।
  • पुस्तकों में विवरण – त्रिगर्त नाम महाभारत, पुराणों और राजतरंगिणी में मिलता है। पाणिनि के अष्टाध्यायी में त्रिगर्त को आयुधजीवी संघ कहा गया है।
  • महाभारत काल – महाभारत के युद्ध में सुशर्मा ने कौरवों का पक्ष लिया था। उसने मत्स्य देश के राजा विराट पर आक्रमण भी किया था।
  • काँगड़ा का अर्थ – काँगड़ा का अर्थ है कान का गढ़। भगवान शिव ने जब जालंधर राक्षस को मारा तो उसके कान जिस जगह गिरे वही स्थान कालांतर में काँगड़ा कहलाया।
  • यूरोपीय यात्री – 1615 ई. में थॉमस कोरयाट, 1666 ई. में थेवेनोट, 1783 में फॉस्टर और 1832 ई. में विलियम मूरॉफ्ट ने कांगड़ा की यात्रा की। राजतरंगिणी के अनुसार 470 ई. में श्रेष्ठ सेना, 520 ई. में प्रवर सेना (दोनों कश्मीर के राजा) ने त्रिगर्त पर आक्रमण कर उसे जीता था। ह्वेनसांग 635 ई. में कांगड़ा के राजा उतितों (उदिमा) के मेहमान बनकर काँगड़ा आये। वह पुनः 643 ई. में काँगड़ा आये। कांगड़ा के राजा पृथ्वी चंद (883-903) ने कश्मीर के राजा शंकर बर्मन के विरुद्ध युद्ध किया था।

मध्यकालीन इतिहास (Medieval History of Kangra Riyasat)

  • महमूद गजनवी – महमूद गजनवी ने 1009 ई. में औहिंद के राजा आनंदपाल और उसके पुत्र ब्रह्मपाल को हराकर काँगड़ा पर आक्रमण किया। उस समय काँगड़ा का राजा जगदीश चंद्र था। काँगड़ा किला 1043 ई. तक तुर्कों के कब्जे में रहा। 1043 ई. में काँगड़ा किला तोमर राजाओं ने आजाद करवाया। परन्तु वह 1051-52 ई. में पुनः तुर्की के कब्जे में चला गया। 1060 ई. में काँगड़ा राजाओं ने पुनः काँगड़ा किले पर कब्जा कर लिया।1170 ई. में पदमचन्द और पूर्वचन्द (जसवान राज्य का संस्थापक) ने काँगड़ा पर राज किया।
  • तुगलक – पृथ्वीचंद (1330 ई.) मुहम्मद बिन तुगलक के 1337 ई. के काँगड़ा आक्रमण के समय काँगड़ा का राजा था। रूपचंद का नाम मानिकचंद’ के नाटक ‘धर्मचंद्र नाटक’ में भी मिला है, जो 1562 ई. के आसपास लिखा गया था। फिरोजशाह तुगलक ज्वालामुखी मंदिर से 1300 पुस्तकें फ़ारसी में अनुवाद के लिए ले गया| इन पुस्तकों का फारसी में अनुवाद में  इन पुस्तकों का फारसी में दलील-ए-फिरोजशाही’ के नाम से अनुवाद ‘इज्जुद्दीन खालिदखानी’ ने किया| फिरोजशाह तुगलक के पुत्र नारुहान ने 1389 ई. में भागकर नगरकोट पहाड़ियों में शरण ली थी तब काँगड़ा  का राजा सागर चंद (1375 ई.) था।
  • तैमूरलंग – कांगड़ा के राजा मेघचंद, (1390 ई.), के समय 1398 ई. में तैमूर लंग ने शिवालिक की पहाड़ियों को लूटा था। वर्ष 1399 ई. में वापसी में तैमूरलंग के हाथों धमेरी (नूरपुर) को लूटा गया। हण्डूर (नालागढ़) के राजा आलमचंद ने तैमूरलंग की मदद की थी|
  • हरिचंद-I (1405 ई.) और कर्मचंद-हरिचंद-I एक बार शिकार के लिए हडसर (गुलेर) गये जहाँ वे अपने सैनिकों से बिछुड़ गुएऔर कई दिन तल नहीं मिले| मरा समझकर उनके भाई कर्मचन्द को राजा बना दिया गया| हरिचंद को 21 दिन बाद एक व्यापारी राहगीर ने खोजा| हरिचंद को अपने भाई के राजा बनने का समाचार मिला तो उन्होंने हरिपुर में किला व राजधानी बनाकर गुलेर राज्य की स्थापना की|। आज भी गुलेर को काँगड़ा के हर त्योहार/उत्सव में प्राथमिकता मिलती है क्योंकि वह काँगड़ा वंश के बड़े भाई द्वारा स्थापित किया गया था। संसारचंद-I कर्मचंद का बेटा था जो 1430 ई. में राजा बना।
  • मुगलवंश – धर्मचंद (1528 ई. से 1563 ई.), मानिक चंद (1563 ई. से 1570 ई.), जयचंद (1570 ई.-1585 ई.) और विधिचंद (1585 ई. से 1605)ई. अकबर के समकालीन राजा थे। राजा जयचंद (1570 ई. से 1585 ई.) को अकबर ने गुलेर के राजा रामचंद की सहायता से बंदी बनाया था। राजा जयचंद के बेटे विधिचंद ने 1572 ई. में अकबर के विरुद्ध विद्रोह किया। अकबर ने हुसैन कुली खान को काँगड़ा पर कब्जा कर राजा बीरबल को देने के लिए भेजा। ‘तबाकत-ए-अकबरी’ के अनुसार खानजहाँ ने 1572 ई. में काँगड़ा किले पर कब्जा कर लिया परन्तु हुसैन मिर्जा और मसूद मिर्जा के पंजाब आक्रमण की वजह से उसे इसे छोड़ना चहा अकबर ने टोडरमल को पहाड़ी क्षेत्रों को मापने के लिए भेजा। 1589 ई. में विधिचंद ने पहाड़ी राजाओं से मिलकर विद्रोह किया|
  • त्रिलोकचंद (1605 ई. 1612 ई.) और हरिचंद-II (1612-1627) जहांगीर के समकालीन काँगड़ा के राजा थे। हरिचंद-II के समय नूरपुर के राजा सूरजमल ने विद्रोह कर चम्बा में शरण ली। सूरजमल के छोटे भाई जगत सिंह और राय.रैयन विक्रमजीत की मदद से 1620 ई. में काँगड़ा किले पर नवाब अली खान ने कब्जा कर लिया। नवाब अली खान काँगडा किले का पहला मुगल (किलेदार था जहाँगीर अपनी पत्नी नूरजहां के साथ सिब्बा गुलेर होते हुए काँगड़ा आया। काँगड़ा किले में मस्जिद बनाई । वापसी में वह नूरपुर और पठानकोट होता हुआ वापस गया।
  • चन्द्रभान सिंह – (1627 ई. से 1660 तक) – काँगड़ा वंश का अगला राजा हुआ जिसे मुगलों ने राजगिर की जागीर देकर अलग जगह बसा दिया। चंद्रभान सिंह को 1660 ई. में औरंगजेब ने गिरफ्तार किया।
  • विजयराम चंद – (1660 ई. से 1697 ई.) – ने बीजापुर शहर की नींव रखी और उसे अपनी राजधानी बनाया।
  • आलमचंद (1697 ई. से 1700 ई.) – ने 1697 ई. में सुजानपुर के पास आलमपुर शहर की नींव रखी।
  • हमीरचंद (1700 ई. से 1747 ई.) – आलमचंद के पुत्र हमीरचंद ने हमीरपुर में किला बनाकर हमीरपुर शहर की नींव रखी। इसी के कार्यकाल में नवाब सैफअली खान (1740 ई.) काँगड़ा किले का अंतिम मुगल किलेदार बना।
  • राजधानी – 1660 ई. से 1697 ई. तक बीजापुर, 1697 से 1748 ई. तक आलमपुर और 1761 ई. से 1824 ई. तक सुजानपुर टीहरा काँगड़ा रियासत की राजधानी रही। 1660-1824 ई. से पूर्व और बाद में कांगड़ा की राजधानी काँगड़ा शहर थी जो कि 1855 ई. में अंग्रेजों ने धर्मशाला स्थानांतरित कर दी।

काँगड़ा का आधुनिक इतिहास (Modern History of Kangra Riyasat)

  • अभयचंद (1747 ई. से 1750 ई.) – अभयचंद ने ठाकुरद्वारा और 1748 ई. में टिहरा में एक किले की स्थापना की।
  • घमण्डचंद (1751 ई.-1774 ई.) – घमण्डचंद ने 1761 ई. में सुजानपुर शहर की नींव रखी। अहमदशाह दुर्रानी के आक्रमण (मुगलों पर) का फायदा उठाकर घमंडचंद ने काँगड़ा किला को छोड़कर अपनी पुरानी सारी रियासत पर कब्जा कर लिया। घमण्डचंद को 1759 ई. में अहमदशाह दुर्रानी ने जालंधर दोआब का निजाम बनाया। घमण्डचंद की 1774 ई. में मृत्यु हो गई।
  • संसारचंद-II (1775 ई. से 1824 ई.) जस्सा सिंह रामगढ़िया पहला सिख था जिसने काँगड़ा, चम्बा, नूरपुर की पहाड़ियों पर जाक्रमण किया। उसे 1775 ई. में जयसिंह कन्हया ने हराया, सायद ने जयसिंह कन्हैया को काँगडा किले पर कब्जे के लिए 1781 ई. में बुलाया। सैफअली खान की मृत्यु के बाद 1783 ई. में जय सिंह कन्हैया ने काँगड़ा किले पर कब्जा कर लिया। उसने 1787 ई. में संसारचंद को काँगड़ा किला सौंप दिया तथा बदले में मैदानी भू-भाग ले लिया।
  • संसारचंद के आक्रमण – संसादचंद ने रिहलू के लिए चम्बा के राजा को नेरटी शाहपुर में हराया। उसने मण्डी के राजा ईश्वरीसेन को बंदी बना 12 वर्षों तक नदौन में रखा जिसे बाद में अमर सिंह थापा ने छुड़वाया। संसारचंद ने 1794 ई. में बिलासपुर पर आक्रमण किया बाद में उसके पतन का कारण बना। कहलूर (बिलासपुर) के राजा महानचंद ने गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा को संसारचंद पर आक्रमण के लिए निमंत्रण दिया।
  • संसारचंद का पतन – अमर सिंह थापा ने 1805 ई. में बिलासपुर, सुकेत, सिरमौर चम्बा की संयुक्त सेनाओं के साथ मिलकर महलमोरियो (हमीरपुर) में संसारचंद को हराया। संसारचंद ने काँगड़ा किले में शरण ली। संसारचंद ने नौरंग वजीर की मदद से काँगड़ा किले से निकलकर 1809 में महाराजा रणजीत सिंह के साथ ज्वालामुखी की संधि की। 1809 ई. में महाराजा रणजीत सिंह ने अमर सिंह को हराया। संसारचंद ने काँगड़ा किला और 66 गाँव महाराजा रणजीत सिंह को दिए। महाराजा रणजीत सिंह ने देसा सिंह मजीठिया को काँगड़ा किले व क्षेत्र का नाजिम (गर्वनर) बनाया। संसारचंद की 1824 ई. में मृत्यु हो गई।
  • अनिरुद्धचंद (1824) – संसारचंद के बाद उसका बेटा अनिरुद्धचंद काँगड़ा का राजा बना । महाराजा रणजीत सिंह ने अनिरुद्धचंद से अपने प्रधानमंत्री राजा ध्यानसिंह (जम्मू) के पुत्र हीरा सिंह के लिए उसकी एक बहन का हाथ माँगा। अनिरुद्धचंद ने टालमटोल कर अपनी बहनों का विवाह टिहरी गढ़वाल के राजा से कर दिया। अनिरुद्धचंद स्वयं ब्रिटिशों के पास अदिनानगर पहुँच गया। वर्ष 1833 ई. में रणजीत सिंह ने अनिरुद्धचंद की मृत्यु के बाद उसके बेटों (रणबीर चंद और प्रमोदचंद) को महलमेरियो में जागीर दी। वर्ष 1846 ई. में काँगड़ा पूर्ण रूप से ब्रिटिश प्रभुत्व में आ गया। अनिरुद्धचंद के बाद रणबीर चंद (1828 ई.), प्रमोद चंद (1847 ई.), प्रतापचंद (1857 ई.), जयचंद (1864 ई.) और ध्रुवदेव चंद काँगड़ा के राजा बने।

(ख) गुलेर रियासत :- (History of Guler Riyasat)

गुलेर रियासत का पुराना नाम ग्वालियर था। काँगड़ा के राजा हरिचंद ने 1405 ई. में गुलेर रियासत की स्थापना हरिपुर में की जहाँ उसने शहर व किला बनवाया। हरिपुर किले को गुलेर किला भी कहा जाता है। हरिपुर गुलेर रियासत की राजधानी थी।

  • रामचंद (1540 ई.-1570 ई.) – गुलेर रियासत के 15वें राजा ने काँगड़ा के राजा जयचंद को पकड़ने में मुगलों की मदद की। वह अकबर का समकालीन राजा था।
  • जगदीश चंद (1570 ई. -1605 ई.) – 1572 में काँगड़ा के राजा के विद्रोह को दबाने के लिए जो सेना भेजी उसमें जगदीश चंद ने भाग नहीं लिया।
  • रूपचंद (1610 ई.-1635 ई.) – रूप चंद ने काँगड़ा किले पर कब्जे के लिए मुगलों की मदद की थी। वह जहाँगीर का समकालीन था।
  • मानसिंह (1635 ई.-1661 ई.) – मानसिंह को उसकी बहादुरी के लिए शाहजहाँ ने ‘शेर अफगान’ की उपाधि दी थी। उसने मकोट व तारागढ़ किले पर 1641-42 ई. में कब्जा किया था। मानगढ़ का किला मानसिंह ने बनवाया था। 1661 ई. में बनारस में उसकी मृत्यु हो गई।
  • राज सिंह (1675 ई.-1695 ई.) – राज सिंह ने चम्बा के राजा चतर सिंह, बसौली के राजा धीरजपाल और जम्मू के किरपाल देव के साथ मिलकर मुगलों को हराया था।
  • प्रकाश सिंह (1760-1790 ई.) प्रकाश सिंह से पूर्व दलीप सिंह (1695-1730) और गोवर्धन सिंह(1730-1760) गुलेर के राजा बने। प्रकाश सिंह के समय घमण्डचंद ने गुलेर पर कब्जा किया। बाद में संसारचंद ने गुलेर पर कब्जा किया। ध्यान सिंह वजीर ने कोटला इलाका गुलेर राज्य के कब्जे (1785) में रखने में मदद की।
  • भूप सिंह (1790-1820 ई.) – भूप सिंह गुलेर का आखिरी राजा था जिसने शासन किया। देसा सिंह मजीठिया ने 1811 ई. में गुलेर पर कब्जा कर कोटला किले पर कब्जा कर लिया। भूप सिंह के पुत्र शमशेर सिंह (1820-1877 ई.) ने सिक्खों से हरिपुर किला आजाद करवा लिया था। शमशेर सिंह के बाद जय सिंह, रघुनाथ सिंह और बलदेव सिंह (1920 ई.) गुलेर वंश के राजा बने । वर्ष 1846 ई. में गुलेर पर अंग्रेजों का शासन स्थापित हो गया।

(ग) नूरपुर राज्य :- (History of Nurpur)

नूरपुर का प्राचीन नाम धमेरी था। नूरपुर राज्य की पुरानी राजधानी पठानकोट (पैठान) थी। अकबर के समय में नूरपुर के राजा बासदेव ने राजधानी पठानकोट से नूरपुर बदली। प्राचीन काल में नूरपुर और पठानकोट औदुंबर क्षेत्र के नाम से जाना जाता था।

  • स्थापना-नूरपुर राज्य की स्थापना चंद्रवंशी दिल्ली के तोमर राजपूत झेठपाल द्वारा 1000 ई. में की गई थी।
  • जसपाल (1313-1337 ई.) – अलाउद्दीन खिलजी का समकालीन था।
  • कैलाशपाल (1353-97 ई.) ने ‘तातार खान’ (खुरासान का गवर्नर फिरोजशाह तुगलक के समय)
  • भीमपाल (1473-1513 ई.) सिकंदर लोदी का समकालीन था।
  • भक्तमल (1513-58 ई.) – भक्तमल का विवरण ‘अकबरनामा’ में मिलता है। भक्तमल के समय शेरशाह सूरी के पुत्र सलीम शाह ने मकौट किला बनवाया। सिकंदर शाह ने अकबर के शासनकाल में 1557 ई. में भक्तमल के सहयोग से मकौट किले में शरण ली। मुगलों ने 1558 ई. को भक्तमल को गिरफ्तार कर लाहौर भेज दिया जहां बैरम खाँ ने उसे मरवा दिया। भक्तमल ने शाहपुर में भी किला बनवाया था।
  • तस्तमल (1558-80 ई.) को भक्तमल के स्थान पर राजा बनाया गया। वह भक्तमल का भाई था। उसने सर्वप्रथम अपनी राजधानी को पठानकोट से धमेरी बदलने के बारे में सोचा परन्तु हकीकत में लाने से पहले ही मर गया।
  • बासदेव (1580-1613 ई.) – वासदेव ने नूरपुर की राजधानी पठानकोट से धमेरी बदलीबासदेव ने कई बार मुगलों के विरुद्ध (खासतौर पर अकबर) विद्रोह किया। ये सारे विद्रोह सलीम (जहाँगीर) के समर्थन में थे। बासदेव के जहाँगीर के साथ बहुत अच्छे सबंध थे।

(ii) परियोजना :-

  1. पौंगजल विद्युत परियोजना व्यास नदी पर – 396 मेगावाट
  2. गज जल विद्युत परियोजना (शाहपुर) – 10 मेगावाट
  3. बनेर जल विद्युत परियोजना – 12 मेगावाट

(iii) धार्मिक स्थान एवं मंदिर :-

  1. ज्वालामुखी मंदिर – अकबर ने इस मंदिर पर सोने का छत्र चढ़ाया था और फिरोज शाह तुगलक यहाँ से 1300 पुस्तकें फ़ारसी में अनुवाद के लिए ले गया था ।
  2. ब्रजेश्वरी मंदिर – इस मंदिर को महमूद गजनवी ने लूटा था।
  3. काँगड़ा के मसरूर रॉक कट मंदिर को हिमाचल प्रदेश का अजंता कहते हैं। बैजनाथ में शिव मंदिर, नूरपुर में गंगा मंदिर, चामुंडा मंदिर आदि सभी काँगड़ा जिले में हैं।

(iv) शिक्षा और स्थान :-

काँगड़ा के धर्मशाला में केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना की गई है। इसका एक भाग देहरा में भी है।

हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड – धर्मशाला

धर्मशाला – धर्मशाला में डल झील और हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड का मुख्यालय है। यह बौध धर्म गुरु दलाई लामा का निवास स्थान है। धर्मशाला ‘छोटा तिब्बत’ या ‘छोटा लिहासा’ के नाम से भी जाना जाता है। धर्मशाला में 1863 ई. में सेंट जोंस चर्च के पास लॉर्ड एल्गिन को दफनाया गया था। वार मेमोरियल (युद्ध स्मारक) धर्मशाला में है। धर्मशाला में प्रतिवर्ष 340 से.मी. वर्षा होती है। तिब्बत की निर्वासित सरकार का मुख्यालय भी धर्मशाला में है। धर्मशाला का निर्माण 1846 ई. में लॉर्ड मैकलोड ने किया था। धर्मशाला में केंद्रीय विश्वविद्यालय स्थित है।

विश्वविद्यालय – पालमपुर में कृषि विश्वविद्यालय है, जिसकी स्थापना 1978 ई. में की गई थी।

आयुर्वेदिक कॉलेज – पपरौला में आयुर्वेदिक कॉलेज है, जिसकी स्थापना 1978 ई. में की गई थी। पपरौला में नवोदय स्कूल भी है।

स्थान – काँगड़ा के अन्द्रेटा में शोभा सिंह आर्ट गैलरी है।

किताबें – एम.एस.रंधावा ने काँगड़ा पेंटिंग और जे.सी.फ्रेंच ने संसारचंद ऑफ़ कांगड़ा किताब लिखी।

(v) जननांकीय आँकड़े :-

काँगड़ा की जनसंख्या 1901 ई. में 4,78,364 थी जो 1951 से बढ़कर 5,70,643 हो गई । वर्ष 1971 में काँगड़ा की जनसंख्या 8,00,863 जो वर्ष 2011 में बढ़कर 15,07,223 हो गई। काँगड़ा जिले का जन घनत्व 2011 में 263 हो गया है। काँगड़ा जिले में सर्वाधिक 15 विधानसभा क्षेत्र है। काँगड़ा जिले में कुल 3868 गाँव हैं जिनमें से 3619 गाँव आबाद गाँव है। काँगड़ा जिले में 760 पंचायतें है (2011 तक) काँगड़ा जिले की जनसंख्या 2011 में 94.28% ग्रामीण और 5.72% शहरी थी।

(vi) काँगड़ा का स्थान :-

काँगड़ा जिले का क्षेत्रफल 5739 वर्ग कि.मी. है और यह हिमाचल प्रदेश के जिलों में चौथा सबसे बड़ा जिला है। काँगड़ा जिले की जनसंख्या 12 जिलों में सर्वाधिक है। काँगड़ा जिला 2011 में जन घनत्व में 5वें स्थान पर है। काँगड़ा जिला दशकीय जनसंख्या वृद्धि दर (12.56%) में सातवें स्थान पर था। काँगड़ा जिले का लिंगानुपात 2011 में हमीरपुर के बाद सर्वाधिक (दूसरा स्थान) है। काँगड़ा जिला 2011 में शिशु लिंगानुपात के मामले में पिछड़कर 11वें स्थान पर चला गया। वह ऊना के बाद 873 शिशु लिंगानुपात के साथ 11वें स्थान पर है। साक्षरता में काँगड़ा जिला 2011 में तीसरे स्थान पर है। किन्नौर और लाहौल-स्पीती के बाद सबसे अधिक ग्रामीण जनसंख्या काँगड़ा जिले में है। काँगड़ा जिले का 35.92% भाग वनाच्छादित है। वह इस मामले में छठे स्थान पर है। जबकि वनाच्छादित क्षेत्रफल (2062 वर्ग कि.मी.) के मामले में काँगड़ा जिला तीसरे स्थान पर है। काँगड़ा जिले के केवल 3% भाग में चरागाह है। काँगड़ा जिले में सर्वाधिक भैंसे पाई जाती हैं। काँगड़ा जिले में सर्वाधिक लघु उद्योग (8761) है। काँगड़ा जिले में सर्वाधिक (5602 कि.मी.) सड़कों की लम्बाई है। काँगड़ा जिले में (2011-12 में) सर्वाधिक कटहल, आँवला, लौकाठ, अमरुद, लीची, आम, नींबू, माल्टा और संतरे का उत्पादन होता है। आडू, प्लम, गलगल, अनार के उत्पादन में काँगड़ा दूसरे स्थान पर है।

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