History of Kinnaur District in Hindi – किन्नौर जिला का इतिहास

History of Kinnaur District in Hindi

History of Kinnaur District in Hindi

जिले के रूप में गठन21 अप्रैल, 1960
जिला मुख्यालयरिकांगपियो
जनसंख्या (2011 में)84,248 (1.23%)
जनसंख्या   घनत्व (2011 में)13
कुल क्षेत्रफल6401 वर्ग कि.मी. (11.50%)
साक्षरता दर (2011 में)80.77%
लिंग अनुपात (2011 में)818
शिशु लिंगानुपात (2011 में)952
कुल गाँव660 (आबाद गाँव- 234)
ग्राम पंचायतें65
विकास खंड3 (पूह, निचार और कल्पा)
विधानसभा सीटें1
लोकसभा क्षेत्रमंडी
दशकीय जनसंख्या वृद्धि दर (2001-2011)7.61%
भाषाकिन्नौरी, जाँगियाम, सुमिचो
तहसील5
उप-तहसील2

(i) भूगोल :-

  1. भौगोलिक स्थिति :- किन्नौर हिमाचल प्रदेश के पूर्व में स्थित जिला है। किन्नौर के पूर्व में तिब्बत, दक्षिण में उत्तराखण्ड, पश्चिम में कुल्लू, दक्षिण और दक्षिण पश्चिम में शिमला तथा उत्तर पश्चिम में लाहौल-स्पीति जिलें स्थित है। जास्कर किन्नौर और तिब्बत के बीच सीमा निर्धारण करता है। किन्नौर और तिब्बत की सीमा परेछू से शुरू होकर शिपकिला, रैन्सो, शिमडोंग और गुमरंग दरों से होकर गुजरती है।
  2. घाटियाँ :- सतलुज घाटी किन्नौर की सबसे बड़ी घाटी है। हांगरांग घाटी स्पीति नदी के साथ स्थित है जो खाब गाँव के पास सतलुज में मिलती है। सुनाम या रोपाघाटी रोपा नदी द्वारा बनती है। बस्पा घाटी को सांगला घाटी भी कहा जाता है। यह घाटी बस्पा नदी द्वारा निर्मित होती है। यह किन्नौर की सबसे सुंदर घाटी है। कामरू गाँव सांगला घाटी में स्थित है। टिडोंग घाटी टिडोंग नदी द्वारा निर्मित होती है। भाभा किन्नौर का सबसे बड़ा गाँव है जो भाभा घाटी में स्थित है।
  3. नदियाँ :- सतलुज नदी किन्नौर को दो बराबर भागों में बाँटती है। सतलुज को तिब्बत में जुगंति और मुकसुंग के नाम से जाना जाता है। रोपा नदी शियाशू के पास सतलुज नदी में मिलती है। कसांग, तैती, यूला, मुलगुन, स्पीति और बस्पा सतलुज की किन्नौर में प्रमुख सहायक नदियाँ है।
  4. झीलें :- नाको (हांगरांग तहसील में स्थित) और सोरंग (निचार तहसील में स्थित) किन्नौर की प्रमुख झीलें है।
  5. वन :- नियोजा वृक्ष पूरे देश में केवल किन्नौर में पाया जाता है।

(ii) इतिहास :-

  1. प्राचीन इतिहास :- वर्तमान किन्नौर प्राचीन रियासत बुशहर का हिस्सा रहा है। किन्नौर की आदिम जाति की उत्पति दैविक लीला से हुई मानी जाती है। अमरकोश ग्रंथ में किन्नर जाति का वर्णन मिलता है। हिन्दूधर्म ग्रंथ में किन्नर लोगों को अश्वमुखी और किम + नर: (किस प्रकार का नर) कहा गया है। तिब्बती लोग किन्नौर को खुनू कहते है। लद्दाख में किन्नौर, बुशहर और कामरू को मोने कहा जाता है। किन्नौर के निवासी प्राचीन काल में खस थे। किन्नौर राजपूत जो खसों की उपजातियाँ थी। कनैत और जड़ में विभाजित हो गई थी। पाण्डवों ने 12 वर्षों का वनवास किन्नौर में बिताया था। कालिदास ने अपनी पुस्तक कुमारसंभव में किन्नरों का वर्णन किया है। वायु पुराण में किन्नरों को महानंद पर्वत का निवासी बताया गया है।

रियासत की स्थापना :- बनारस के चन्द्रवंशी राजा प्रद्युम्न ने कामरू में राजधानी स्थापित कर बुशहर रियासत की नींव रखी

बौद्ध धर्म का आगमन :- सातवीं से दसवीं सदी के बीच तिब्बत के गूगे साम्राज्य के प्रभाव में आकर किन्नौर में बौद्ध धर्म और भोटिया भाषा का प्रभाव पड़ा था।

  1. मध्यकालीन इतिहास :- बुशहर रियासत बिलासपुर और सिरमौर के साथ शिमला पहाड़ी राज्यों की तीन प्रमुख शक्तियों में से एक थी। राजा चतर सिंह बुशहर रियासत का 110वाँ शासक था। चतर सिंह ने अपनी राजधानी कामरू से सराहन स्थानांतरित की थी। राजा चतर सिंह का पुत्र केहरी सिंह रियासत का सबसे प्रभावी शासक था जिसे ‘अजानबाहु’ भी कहा जाता है, उसे मुगल बादशाह औरंगजेब ने ‘छत्रपति’ की उपाधि दी । चतर सिंह के प्रपौत्र कल्याण सिंह ने कल्याणपुर शहर को अपनी राजधानी बनाया।
  2. आधुनिक इतिहास :- गोरखा आक्रमण – केहर सिंह की मृत्यु के बाद उसका नाबालिग पुत्र महेंद्र सिंह गद्दी पर बैठा। गोरखों ने 1803 से 1815 तक बुशहर रियासत पर आक्रमण कर सराहन पर कब्जा कर लिया। राजा महेंद्र सिंह ने कामरू में अपना डेरा जमाया। वजीर टिक्का राम और बदरी प्रसाद ने गोरखों के विरुद्ध युद्ध का नेतृत्व किया। सतलुज नदी पर बने वांगतू पुल को तोड़कर गोरखों के आक्रमण को रोका गया ।सतलुज नदी पर बने वांगतू पुल को तोड़कर गोरखों के आक्रमण रामपुर-बुशहर रियासत के राजा राम सिंह (1767-99 ई.) ने सराहन से राजधानी रामपुर बदली और रामपुर शहर की नींव रखी। 1857 ई. का विद्रोह-बुशहर रियासत के राजा शमशेर सिंह ने 1857 ई. के विद्रोह में अंग्रेजों की सहायता नहीं की जिसको शिकायत शिमला के DC विलियम हे ने की।
  • राजा शमशेर सिंह :– राजा शमशेर सिंह के वजीर मुंशीलाल के 1854 ई. में राजस्व कर के विरोध में बुशहर रियासत में 1882 ई. में विद्रोह हुआ। राजा शमशेर सिंह को 1887 ई. में उसके पुत्र टिक्का रघुनाथ सिंह के पक्ष में गद्दी छोड़ने के लिए मजबूर किया गया। टिक्का रघुनाथ सिंह ने 1895 ई. में चीनी तहसील की नींव रखी।
  • राजा पदम सिंह :- राजा पदम सिंह को 1914 ई. में अंग्रेजों ने रामपुर बुशहर का राजा माना। राजा पदम सिंह रामपुर बुशहर के अंतिम राजा हुए। वह आजादी तक रामपुर बुशहर के राजा बने रहे। मास्टर अन्नूलाल, सत्यदेव बुशहरी जैसे आंदोलनकारी के प्रयासों से राजा पद्म सिहं ने रामपुर बुशहर का भारत में विलय स्वीकार किया। 1948 ई. में बुशहर रियासत का हिमाचल प्रदेश में विलय हो गया है। वीरभद्र सिंह (6 बार मुख्यमंत्री) पद्म सिंह के पुत्र है जो बुशहर रियासत की 131वीं पीढ़ी से सबंधित हैं। वर्तमान किन्नौर जिला 1960 से पहले महासू जिले की चीनी तहसील के रूप में जाना जाता था। 21 अप्रैल 1960 को चीनी तहसील महासू जिले से अलग होकर किन्नौर नाम से हिमाचल प्रदेश का छठा जिला बना।

(iii) संस्कृति, त्योहार, रीति-रिवाज :-

किन्नौर में मृत्यु के उपरान्त शवों की डुबंत, फुकंत और भखंत की प्रथा प्रचलित थी।

  1. विवाह :- किन्नौर में जनेटांग व्यवस्थित विवाह है। दमचल शीश, दमटंग शीश, जुजीश प्रेम विवाह है। दरोश, डबडब, हचीश, नेमशा डेपांग जबरन विवाह के प्रकार हैं। ‘हर‘ दूसरे की पत्नी को भगाकर किया गया विवाह है।
  2. त्योहार :-

(क) छतरैल त्योहार :- यह त्योहार चारगांव में चैत्र माह में मनाया जाता है। यह त्योहार अपनी अश्लीलता के लिए प्रसिद्ध है।

(ख) दखेरनी त्योहार :- दखेरनी त्योहार सावन के महीने में मनाया जाता है।

(ग) उखयांग या फुलैच त्योहार :- यह फूलों का त्योहार है जो किन्नौर में सबसे प्रसिद्ध है। यह अगस्त से अक्टूबर के बीच मनाया जाता है। इसके अलावा फागुली, लोसर, जागरो, साजो, खेपा, छांगो शेशुल और इराटांग किन्नौर के प्रसिद्ध त्योहार है।

(घ) तोशिम त्योहार :- यह त्योहार अविवाहित पुरुषों द्वारा मनाया जाता है। इसमें स्थानीय शराब ‘घांती‘ का सेवन किया जाता है।

  1. भोजन :- गेहूँ को रेजत, जोड़, थो और ओजा के नाम से जाना जाता है। जौ को टग, छा, छक, नन के नाम से किन्नौर में जाना जाता था। मक्की को ‘छाहा‘ के नाम से जानते हैं। सुतरले त्योहार का व्यंजन है। सनपोले जलेबी जैसा व्यंजन है । काओनी नमकीन बर्फी है। किन्नौर में नाश्ते को खाऊ, दोपहर के भोजन को शिल और रात्री के भोजन को खाऊ कहा जाता है। किन्नौर में ‘छांग‘ देशी शराब है जो हांगरांग घाटी में मुख्यत: पी जाती है। ‘घांती’ जौ से बनी स्थानीय शराब है। रिब्बा घाटी अपने अंगूरों के लिए प्रसिद्ध है इसलिए रिब्बा को ‘अंगूरों की घाटी‘ भी कहते हैं।
  2. पोशाक :- ‘छमू‘  कुर्ती पुरुषों द्वारा पहनी कमीज को कहते हैं। ‘छमू सूथन‘ ऊनी पजामा है जो पुरुषों द्वारा पहना जाता है। ‘थेपांग‘ हिमाचली टोपी का नाम है। महिलाएँ ढोरी, चोली और गचांग पहनती है। ‘छानली‘ शौल का नाम है ।
  3. लवी मेला :- बुशहर के राजा केहरी सिंह ने 1683 ई. में रामपुर में लवी मेला शुरू किया। यह एक व्यापारिक मेला है जहाँ से तिब्बत से व्यापार होता था। यह हिमाचल प्रदेश का सबसे पुराना मेला है।

(iv) अर्थव्यवस्था और शिक्षा :-

  1. शिक्षा :- रिकांगपियो में नवोदय स्कूल है। किन्नौर में 1890 ई. में पहला प्राइमरी स्कूल चीनी में खुला। वर्ष 1899 में पूह में दूसरा प्राइमरी स्कूल खोला गया ।
  2. अर्थव्यवस्था :- किन्नौर में कड़छम में भेड़ प्रजनन केंद्र है ।
  3. खनिज :- किन्नौर में रंगवार में तांबा, असरंग में चीनी मिट्टी, वांगतू में फ्लोस्पर और तांगलिंग में अभ्रक पाया गया है। किन्नौर में चारगांव में पाइराइटऔर चांदी के कण मिले हैं। सांगला घाटी में स्लेट और छांगों में जिप्सम के भण्डार का पता चला है।
  4. जलविद्युत परियोजनाएं :- संजय जल विद्युत् परियोजना (भाभा) 120 मेगावाट, नाथपा झाकड़ी परियोजना (1500 मेगावाट), बस्पा जल विद्युत परियोजना जिले की प्रमुख जलविद्युत परियोजनाएं है।

(v) महत्त्वपूर्ण स्थान –

  1. चीनी :- 1895 ई. में गठित यह तहसील किन्नौर का मुख्यालय भी रहा है। यह लॉर्ड डलहौजी का पसंदीदा निवास स्थान था। डलहौजी ने चीनी में रहते हुए हिन्दुस्तान-तिब्बत सड़क का निर्माण करवाया।
  2. कल्पा :- कल्पा रिकांगपियो से पहले किन्नौर का मुख्यालय था।
  3. छितकुल :- यह बस्पा घाटी का अंतिम गाँव है ।
  4. कामरू :- बुशहर रियासत की प्राचीन राजधानी कामरू में स्थित थी। यहाँ के 5 मंजिला शाही दुर्ग में कामाक्षा देवी मंदिर है।

(vi) जननांकीय आंकड़ें :-

किन्नौर की जनसंख्या 1901 ई. में 27,232 से बढ़कर 1951 ई. में 34,475 हो गई।  वर्ष 1971 ई. में किन्नौर की जनसंख्या 49,835 से बढ़कर 2011 में 84,298 हो गई।  वर्ष 2011 में किन्नौर का लिंगानुपात 818 (न्यूनतम) रह गया है। किन्नौर का जनघनत्व 2011 में 13 हो गया है। किन्नौर जिले का 2011 में हिमाचल प्रदेश की जनसंख्या में योगदान 1.23% है। 2001-2011 में दशकीय वृद्धि दर 7.61% थी। किन्नौर की साक्षरता दर 2011 में 80.77 % थी। किन्नौर में कुल 660 गाँव है जिसमें से आबाद गाँव 234 है।  किन्नौर में 65 ग्राम पंचायतें है। वर्ष 2011 में किन्नौर का शिशु लिंगानुपात (0-6 वर्ष) 952 था।

(vii) किन्नौर का स्थान :-

किन्नौर लाहौल-स्पीति और चम्बा के बाद तीसरा सबसे बड़ा जिला है। किन्नौर की जनसंख्या लाहौल-स्पीति के बाद न्यूनतम (11वां स्थान) है। वर्ष 2001-2011 के बीच किन्नौर की दशकीय जनसंख्या वृद्धि लाहौल-स्पीति के बाद न्यूनतम (11वाँ स्थान) है। जनसंख्या घनत्व में भी किन्नौर का स्थान 11वाँ है। किन्नौर जिले में सबसे कम लिंगानुपात (2011 में) 818 था। शिशु लिंगानुपात (0-6 वर्ष) में किन्नौर 2011 में 952 के साथ तीसरे स्थान पर था। साक्षरता में (वर्ष 2011 में) किन्नौर 8वें स्थान पर था। किन्नौर की शत-प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण है। किन्नौर के केवल 9.4% क्षेत्र वनाच्छादित है जोकि लाहौल-स्पीति (1.39%) के बाद न्यूनतम है। किन्नौर में सबसे कम लघु उद्योग है। वर्ष 2011-2012 में किन्नौर शिमला के बाद सेब उत्पादन में दूसरे स्थान पर आ गया। किन्नौर में 53290 टन सेब का उत्पादन हुआ। किन्नौर अंगूर उत्पादन में पहले स्थान पर है।

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