Modern History of Himachal Pradesh in Hindi
Table of Contents
i) सिख : – गुरुनानक देव जी ने काँगड़ा, ज्वालामुखी, कुल्लू, सिरमौर और लाहौल-स्पीती की यात्रा की। 5वें सिख गुरु अर्जुन देव जी ने पहाड़ी राज्यों में भाई कलियाना को हरमिंदर साहिब (स्वर्ण मन्दिर) के निर्माण के लिए चंदा एकत्र करने के लिए भेजा। छठे गुरु हरगोविंद जी ने बिलासपुर (कहलूर) के राजा की तोहफें में दी हुई भूमि पर किरतपुर का निर्माण किया। नवें सिख गुरु तेग बहादुर जी ने कहलूर (बिलासपुर) से जमीन लेकर ‘मखोवाल‘ गाँव की स्थापना की जो बाद में आनंदपुर साहिब कहलाया।
1. गुरु गोविंद सिंह : – गुरु गोविंद सिंह और कहलूर के राजा भीमचंद के बीच सफेद हाथी को लेकर मनमुटाव हुआ जिसे आसाम की रानी रतनराय ने दिया था। गुरु गोविंद सिंह 5 वर्षों तक पौंटा साहिब में रहे और दशम ग्रन्थ की रचना की। गुरु गोविंद सिंह और कहलूर के राजा भीमचंद; उसके समधी गढ़वाल के फतेहशाह और हण्डूर के राजा हरिचंद के बीच 1686 ई. में ‘भगानी साहिब‘ का युद्ध लड़ा गया, जिसमें गुरु गोविंद सिंह ही विजयी रहे।
हण्डूर (नालागढ़) के राजा हरिचंद की मृत्यु गुरु गोविंद सिंह के तीर से हो गई। युद्ध के बाद गुरु गोविंद सिंह ने हरिचंद के उत्तराधिकारी को भूमि लौटा दी और भीमचंद (कहलूर) के साथ भी उनके संबंध मधुर हो गए। राजा भीमचंद ने मुगलों के विरुद्ध गुरु गोविंद सिंह से सहायता मांगी। गुरु गोविंद सिंह ने नदौन में मुगलों को हराया।
गुरु गोविंद सिंह ने मण्डी के राजा सिद्धसेन के समय मण्डी और कुल्लू की यात्रा की। गुरु गोविंद सिंह ने 13 अप्रैल, 1699 ई. को बैशाखी के दिन आनंदपुर साहिब (मखोवाल) में 80 हजार सैनिकों के साथ खालसा पंथ की स्थापना की। गुरु गोविंद सिंह जी की 1708 ई. में नांदेड़ (महाराष्ट्र) में मृत्यु हो गई। बंदा बहादुर की मृत्यु के बाद सिख 12 मिसलों में बंट गए।
“Himachal Pradesh Modern History“
2. काँगड़ा किला, संसारचंद, गोरखे और महाराजा रणजीत सिंह : – राजा घमंडचंद ने जस्सा सिंह रामगढ़िया को हराया। काँगड़ा की पहाड़ियों पर आक्रमण करने वाला पहला सिख जस्सा सिंह रामगढ़िया था। घमंडचंद की मृत्यु के उपरान्त संसारचंद द्वितीय ने 1782 ई. में जय सिंह कन्हैया की सहायता से मुगलों से काँगड़ा किला छीन लिया। जयसिंह कन्हैया ने 1783 में काँगड़ा किला अपने कब्जे में लेकर संसारचंद को देने से मना कर दिया। जयसिंह कन्हैया ने 1785 ई. में संसारचंद को काँगड़ा किला लौटा दिया।
क) संसारचंद : – संसारचंद-II काँगड़ा का सबसे शक्तिशाली राजा था। वह 1775 ई. में काँगड़ा का राजा बना। उसने 1786 ई. में ‘नेरटी शाहपुर‘ युद्ध में चम्बा के राजा को हराया। वर्ष 1786 में 1805 ई. तक का काल संसारचंद के लिए स्वर्णिम काल था। उसने 1787 ई. में काँगड़ा किले पर कब्जा किया।
संसारचंद ने 1794 ई. में कहलूर (बिलासपुर) पर आक्रमण किया। यह आक्रमण उसके पतन की शुरुआत बना। कहलूर के राजा ने पहाड़ी शासकों के संघ के माध्यम से गोरखा अमर सिंह थापा को राजा संसारचंद को हराने के लिए आमंत्रित किया।
“हिमाचल का आधुनिक इतिहास”
ख) गोरखे : – गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा ने 1804 ई. तक कुमायूँ, गढ़वाल, सिरमौर तथा शिमला की 30 हिल्स रियासतों पर कब्जा कर लिया था। 1806 ई. को अमर सिंह थापा ने महलमोरियों (हमीरपुर) में संसारचंद को पराजित किया। संसारचंद ने काँगड़ा जिले में शरण ली, वह वहां 4 वर्षों तक रहा।
अमर सिंह थापा ने 4 वर्षों तक काँगड़ा किले पर घेरा डाल रखा था, संसारचंद ने 1809 में ज्वालामुखी जाकर महाराजा रणजीत सिंह से मदद माँगी। दोनों के बीच 1809 ई. में ज्वालामुखी की संधि हुई।
ग) महाराजा रणजीत सिंह : – 1809 ई. में महाराजा रणजीत सिंह ने गोरखों पर आक्रमण कर अमर सिंह थापा को हराया और सतलुज के पूर्व तक धकेल दिया। संसारचंद ने महाराजा रणजीत सिंह को 66 गाँव और काँगड़ा किला सहायता के बदले में दिया। देसा सिंह मजीठिया को काँगड़ा किला और काँगड़ा का नाजिम 1809 ई. में महाराजा रणजीत सिंह ने बनाया।
महाराजा रणजीत सिंह ने 1813 ई. में हरिपुर (गुलेर) बाद में नूरपुर और जसवाँ को अपने अधिकार में ले लिया। 1818 में दत्तापुर, 1825 में कुटलहर को हराया। वर्ष 1823 में संसारचंद की मृत्यु के बाद अनिरुद्ध चंद को एक लाख रूपये के नजराना के एवज में गद्दी पर बैठने दिया गया।
अनिरुद्ध चंद ने रणजीत सिंह को अपनी बेटी का विवाह जम्मू के राजा ध्यान सिंह के पुत्र से करने से मना कर दिया और अंग्रेजों से शरण मांगी। 1839 ई. में वैंचुराके नेतृत्व में एक सेना मण्डी तो दूसरी कुल्लू भेजी गई। महाराजा रणजीत सिंह की 1839 ई. में मृत्यु के पश्चात सिखों का पतन शुरू हो गया।
“Modern History of Himachal Pradesh”
(ii) अंग्रेज (ब्रिटिश) : –
1. ब्रिटिश और गोरखे : – गोरखों ने कहलूर के राजा महानचंद के साथ मिलकर 1806 में संसारचंद को हराया। अमर सिंह थापा ने 1809 ई. में भागल रियासत के राणा जगत सिंह को भगाकर अर्की पर कब्जा कर लिया। अमर सिंह थापा ने अपने बेटे रंजौर सिंह को सिरमौर पर आक्रमण करने के लिए भेजा। राजा कर्मप्रकाश (सिरमौर) ने ‘भूरिया’ (अम्बाला) भागकर जान बचाई।
नाहन और जातक किले पर गोरखों का कब्जा हो गया। 1810 ई. में गोरखों ने हिण्डूर, जुब्बल और पण्ड्रा क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। अमर सिंह थापा ने बुशहर रियासत पर 1811 ई.में आक्रमण किया। अमर सिंह थापा 1813 ई. तक रामपुर में रहा उसके बाद अर्की वापस लौट आया।
क) गोरखा और ब्रिटिश हितों का टकराव – 1813 ई. में अमर सिंह थापा ने सरहिंद के 6 गाँवों पर कब्जा करना चाहा। जिसमें से 2 गाँव ब्रिटिश-सिखों के अधीन थे। इससे दोनों में विवाद बढ़ा। दूसरा ब्रिटिश के व्यापारिक हितों के आगे गोरखे आने लगे थे क्योंकि तिब्बत से उनका महत्त्वपूर्ण व्यापार होता था।
गोरखों ने तिब्बत जाने वाले लगभग सभी दर्रों एवं मार्गों पर कब्जा कर लिया था इसलिए गोरखा-ब्रिटिश युद्ध अनिवार्य लगने लगा था। अंग्रेजों ने 1 नवम्बर, 1814 को गोरखों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी।
“हिमाचल का आधुनिक इतिहास”
ख) गोरखा-ब्रिटिश युद्ध – मेजर जनरल डेविड ओक्टरलोनी और मेजर जनरल रोलो गिलेस्पी के नेतृत्व में अंग्रेजों ने गोरखों के विरुद्ध युद्ध लड़ा। मेजर गिलेस्पी ने 4400 सैनिकों के साथ गोरखा सेना को कलिंग के किले में हराया जिसका नेतृत्व बलभद्र थापा कर रहे थे। अमर सिंह थापा के पुत्र रंजौर सिंह ने नाहन से जातक किले में जाकर अंग्रेजी सेना को भारी क्षति पहुंचाई।
कहलूर रियासत शुरू में गोरखों के साथ था जिससे गोरखों ने ब्रिटिश सेनाओं को कई स्थानों पर भारी क्षति पहुंचाई। अंग्रेजों ने बिलासपुर के सरदार के साथ मिलकर कन्दरी से नाहन तक सड़क बनवाई। अंग्रेजों ने 16 जनवरी, 1815 को डेविड आक्टरलोनी के नेतृत्व में अर्की पर आक्रमण किया। अमर सिंह थापा मलौण किले में चला गया जिससे तारागढ़, रामगढ़ के किले पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया।
ग) गोरखा पराजय – जुब्बल रियासत में अंग्रेजों ने डांगी वजीर और प्रिमू के साथ मिलकर 12 मार्च, 1815को चौपाल में 100 गोरखों को हथियार डालने पर विवश किया। चौपाल जितने के बाद ’राबिनगढ़ किले’ जिस पर रंजौर सिंह थापा का कब्जा था, अंग्रेजों ने आक्रमण किया। टीकम दास, बदरी और डांगी वजीर के साथ बुशहर रियासत की सेनाओं ने अंग्रेजों के साथ मिलकर गोरखों को ‘राबिनगढ़ किले’ से भगा दिया।
“Modern History of HP State”
रामपुर-कोटगढ़ में बुशहर और कुल्लू की संयुक्त सेनाओं ने ’सारन-का-टिब्बा’ के पास गोरखों को हथियार डालने पर मजबूर किया। हण्डूर के राजा रामशरण और कहलूर के राजा के साथ मिलकर अंग्रेजों ने मोर्चा बनाया। अमरसिंह थापा को रामगढ़ से भागकर मलौण किले में शरण लेनी पड़ी।
भक्ति थापा (गोरखों का बहादुर सरदार) की मृत्यु मलौण किले में होने से गोरखों को भारी क्षति हुई। कुमायूँ की हार और उसके सैनिकों की युद्ध करने की अनिच्छा ने अमर सिंह थापा को हथियार डालने पर मजबूर किया।
घ) सुगौली की संधि – अमर सिंह थापा ने अपने और अपने पुत्र रंजौर सिंह जो कि जातक दुर्ग की रक्षा कर रहा था के सम्मानजनक और सुरक्षित वापसी के लिए 28 नवम्बर, 1815 ई. को ब्रिटिश मेजर जनरल डेविड आक्टरलोनी के साथ ’सुगौली की संधि’ पर हस्ताक्षर किए। इस संधि के अनुसार गोरखों को अपने निजी सम्पति के साथ वापस सुरक्षित नेपाल जाने का रास्ता प्रदान किया।
“Modern History of Himachal Pradesh”
2. ब्रिटिश और पहाड़ी राज्य – अंग्रेजों ने पहाड़ी रियासतों से किए वादों का पूर्ण रूप से पालन नहीं किया। राजाओं को उनकी गद्दियाँ तो वापस दे दी लेकिन महत्त्वपूर्ण स्थानों पर अपना अधिकार बनाए रखा। अंग्रेजों ने उन रियासतों पर भी कब्जा कर लिया जिनके राजवंश समाप्त हो गए या जिनमें उत्तराधिकारी के लिए झगड़ा था।
पहाड़ी शासकों को युद्ध खर्चे के तौर पर भारी धनराशी अंग्रेजों को देनी पड़ती थी। अंग्रेजों ने ‘पलासी’ में 20 शिमला पहाड़ी राज्यों की बैठक बुलाई ताकि गोरखों से प्राप्त क्षेत्रों का बंटवारा किया जा सके। बिलासपुर,कोटखाई, भागल और बुशहर को 1815 से 1819 सनद प्रदान की गई। कुम्हारसेन, बाल्सन, थरोच, कुठार, मंगल, धामी को स्वतंत्र सनदें प्रदान की गई।
खनेठी और देलथ बुशहर राज्य को दी गई जबकि कोटि, घुण्ड, ठियोग, मधान और रतेश क्योंथल रियासत को दे दी गई। सिखों के खतरे के कारण बहुत से राज्यों ने अंग्रेजों की शरण ली। नूरपुर के राजा बीर सिंह ने शिमला और सबाथू छावनी (अंग्रेजों की) में शरण ली। बलबीर सेन मण्डी के राजा ने रणजीत सिंह के विरुद्ध मदद के लिए सबाथू के पोलिटिकल एंजेट कर्नल टप्प को पत्र लिखा।
बहुत से पहाड़ी राज्यों ने अंग्रेजों की सिखों के विरुद्ध मदद भी की। गुलेर के शमशेर सिंह, नूरपुर के बीर सिंह, कुटलहर के नारायण पाल ने सिखों को अपने इलाकों से खदेड़ा। महाराजा रणजीत की मृत्यु के बाद तथा 9 मार्च, 1846 की लाहौर संधि के बाद सतलुज और ब्यास के क्षेत्रों पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया। 1846 ई. तक अंग्रेजों ने काँगड़ा, नूरपुर, गुलेर, जस्वान, दतारपुर, मण्डी, सुकेत, कुल्लू और लाहौल-स्पीती को पूर्णत: अपने कब्जे में ले लिया।
ये भी पढ़ें: – Geography of Himachal Pradesh in Hindi – हिमाचल प्रदेश का भूगोल