समास किसे कहते है? परिभाषा, भेद और उदाहरण – Samas Kise Kahate Hain?

samas kise kahte hai hindi mein

समास किसे कहते है? (Samas Kise Kahate Hain)

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समास का शाब्दिक अर्थ है संक्षेपीकरण, दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को समास कहते हैं.

समास का शाब्दिक अर्थ है – संक्षेपीकरण

समास दो शब्दों सम (संक्षिप्त) एवं आस (कथन/ शब्द) के मेल से बना है जिसका अर्थ है – संक्षिप्त कथन या शब्द। समास प्रक्रिया में शब्दों का संक्षिप्तीकरण किया जाता है।

समास (Compound)

दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को समास कहते है। समास में दो पद होते है:-

  1. पूर्वपद
  2. उत्तरपद

समस्त पद / सामासिक पद: समास के नियमों से बना शब्द समस्त पद या सामासिक शब्द कहलाता है।

समास विग्रह: समस्त पद के सभी पदों को अलग-अलग किए जाने की प्रक्रिया समास – विग्रह या व्यास कहलाती है।

उदाहरण :-

नील कमल का विग्रह “नीला है जो कमल” तथा चौराहा का विग्रह है “चार राहों का समूह”

जैसा कि हम जानते है समास रचना में प्रायः दो पद होते है। पहले को पूर्वपद और दूसरे को उत्तरपद कहते है:-

जैसे – राजपुत्र में पूर्वपद राज है और उत्तरपद पुत्र है। समास प्रक्रिया में पदों के बीच की विभक्तियाँ लुप्त हो जाती है।

जैसे –राजा का पुत्र = राजपुत्र। यहाँ ‘का‘ विभक्ति लुप्त हो गई है।

इसके अलावा कई शब्दों में कुछ विकार भी आ जाता है।

जैसे काठ की पुतली = कठपुतली (काठ के का का बन जाना)

घोड़े का सवार = घुड़सवार (घोड़े के घो का घु बन जाना)।

समास के कितने भेद होते है? (Samas ke Kitne Bhed Hote Hai)

समास के 6 मुख्य भेद होते है: –

1) अव्ययीभाव समास (Adverbial Compound)

2) तत्पुरुष समास (Determinative Compound)

3) कर्मधारय समास (Appositional Compound)

4) द्विगु समास (Numeral Compound)

5) द्वंद्व समास (Copulative Compound)

6) बहुव्रीहि समास (Attributive Compound)

samash kise kehte hai
samash kise kehte hai

 

ध्यान दें: – संस्कृत में (द्विगु) तथा (कर्मधारय) को अलग-अलग भेद माना गया है, लेकिन हिन्दी में इनकी चर्चा तत्पुरुष समास के अन्तंगत की जाती है।

पदों की प्रधानता के आधार पर वर्गीकरण: –

पूर्वपद प्रधान – अव्ययीभाव

उत्तरपद प्रधान – तत्पुरुष, कर्मधारय व द्विगु

दोनों पद प्रधान – द्वंद्व

दोनों पद अप्रधान- बहुव्रीहि (इसमें कोई तीसरा अर्थ प्रधान होता है)


(1) अव्ययीभाव समास (Adverbial Compound)

जिस समास का पहला पद (पूर्वपद) अव्यय व प्रधान हो, उसे अव्ययीभाव समास कहते है।

अव्ययीभाव समास की पहचान

इसमें पहला पद अनु, यथा, , भरप्रति, यावत, हर आदि होता है।

ध्यान दें: – पहला पद नामपद समास में पहला पद अव्यय या उपसर्ग न होकर संज्ञा या विशेषण शब्द होता है। हिंदी में ऐसे समासों का प्रयोग बहुत होता है।

पूर्वपद (अव्यय)+उत्तरपद=समस्त पदविग्रह
अनु+रूप=अनुरूपरूप के योग्य
यथा+शक्ति=यथाशक्तिशक्ति के अनुसार
यथा+संभव=यथासंभवजैसा संभव हो
यथा+क्रम=यथाक्रमक्रम के अनुसार
+जन्म=आजन्मजन्म से लेकर
भर+पेट=भरपेटपेट भर के
प्रति+कूल=प्रतिकूलइच्छा के विरुद्ध
प्रति+दिन=प्रतिदिनप्रत्येक दिन
हाथ+हाथ=हाथों-हाथहाथ ही हाथ में
+मरण=आमरणमरण तक

(2) तत्पुरुष समास (Determinative Compound)

जिस समास में बाद का अथवा उत्तरपद प्रधान होता है तथा दोनों पदों के बीच का कारक चिह्न लुप्त हो जाता है, उसे तत्पुरुष समास कहते है।

उदाहरण: – राजा का कुमार = राजकुमार

धर्म का ग्रंथ = धर्मग्रंथ

रचना को करने वाला = रचनाकार

विशेष – समस्त पद बनते समय विभक्ति चिह्नों का लोप हो जाता है तथा इसके विपरीत समास विग्रह के अन्तर्गत विभक्ति चिह्नों ‘से‘, ‘पर‘, ‘को‘ आदि का प्रयोग किया जाता है।

1) संस्कृत से हिंदी में कुछ ऐसे समास भी आ गए है जिनसे कुछ विशिष्ट नियमों के कारण संस्कृत की विभक्तियों का लोप नहीं होता।

उदाहरण: –

मृत्यु को जीतने वाला- मृत्युंजय (शिव)

विश्व को भरने वाला – विश्वंभर (ईश्वर)

2) अनेक बार दोनों पदों के मध्य आने वाला ‘पूरा शब्द समूह‘ (परसर्ग की तरह लुप्त) हो जाता है।

उदाहरण: – दही + बड़ा = दही में डूबा हुआ बड़ा।

तत्पुरुष समास के भेद

विभक्तियों के नामों के अनुसार छ: भेद है-

tatpurush samas ke bhed in hindi
tatpurush samas ke bhed in hindi
1. कर्म तत्पुरुष (द्वितीया तत्पुरुष)

इसमें कर्म कारक की विभक्ति ‘को’ का लोप हो जाता है, जैसे-

विग्रहसमस्त पद
ग्राम को गया हुआग्रामगत
रथ को चलाने वालारथचालक
गगन को चूमने वालगगनचुंबी
यश को प्राप्तयशप्राप्त
चिड़ियों को मारने वालाचिड़ीमार
जेब को कतरने वालाजेबकतरा
2. करण तत्पुरुष (तृतीया तत्पुरुष)

इसमें करण कारक की विभक्ति ‘से’, ‘के द्वारा’ का लोप हो जाता है; जैसे-

विग्रहसमस्त पद
शोक से ग्रस्तशोकग्रस्त
मद से अंधामदांध
भय से आकुलभयाकुल
सूर के द्वारा रचितसूररचित
करुणा से पूर्णकरुणापूर्ण
मन से चाहामनचाहा
3. संप्रदान तत्पुरुष (चतुर्थी तत्पुरुष)

इसमें संप्रदान कारक की विभक्ति ‘के लिए’ लुप्त हो जाती है; जैसे-

विग्रहसमस्त पद
परीक्षा के लिए भवनपरीक्षा भवन
गौ के लिए शालागौशाला
स्नान के लिए घरस्नानघर
यज्ञ के लिए शालायज्ञशाला
देश के लिए भक्तिदेशभक्ति
हाथ के लिए कड़ीहथकड़ी
प्रयोग के लिए शालाप्रयोगशाला
स्नान के लिए घरस्नानघर
डाक के लिए गाड़ीडाक गाड़ी
4. अपादान तत्पुरुष (पंचमी तत्पुरुष)

इसमें अपादान कारक की विभक्ति ‘से’ (अलग होने का भाव) लुप्त हो जाती है, जैसे-

विग्रहसमस्त पद
पद से च्युतपदच्युत
ऋण से मुक्तऋणमुक्त
पाप से मुक्तपापमुक्त
धन से हीनधनहीन
जल से हीनजलहीन
देश से निकालादेशनिकाला
गुण से हीनगुणहीन
पथ से भ्रष्टपथभ्रष्ट
5. संबंध तत्पुरुष (षष्ठी तत्पुरुष)

इसमें संबंधकारक की विभक्ति ‘का’, ‘के’, ‘की’ लुप्त हो जाती है; जैसे-

विग्रहसमस्त पद
राजा का कुमारराजकुमार
देश की रक्षादेशरक्षा
विद्या का सागरसागर विद्यासागर
राजा का पुत्रराजपुत्र
शिव का आलयशिवालय
राजा की आज्ञाराजाज्ञा
पर के अधीनपराधीन
6. अधिकरण तत्पुरुष (सप्तमी तत्पुरुष)

इसमें अधिकरण कारक की विभक्ति ‘में’, ‘पर’ लुप्त हो जाती है; जैसे-

विग्रहसमस्त पद
गृह में प्रवेशगृहप्रवेश
कला में श्रेष्ठकलाश्रेष्ठ
पुरुषों में उत्तमपुरुषोत्तम
लोक में प्रियलोकप्रिय
आनंद में मग्नआनंदमग्न
आप पर बीतीआपबीती
शोक में मग्नशोकमग्न
धर्म में वीरधर्मवीर

 

ध्यान दें: – तत्पुरुष समास के उपर्युक्त भेदों के अलावा कुछ अन्य भे भी है, जिनमें प्रमुख है ‘नञ् समास’

7. नञ् समास

जिस समास के पूर्व पद में निषेधसूचक/नकारात्मक शब्द (अ, अनू, न, ना, गैर आदि) लगे हों,

जैसे- धर्म (न धर्म), निष्ट (न इष्ट), अनावश्यक (न आवश्यक), नापसंद (न पसंद), गैरवाजिब (न वाजिब) आदि।

ये भी पढ़ेंसंज्ञा किसे कहते है? परिभाषा, भेद और उदाहरण


(3) कर्मधारय समास (Appositional Compound)

जिस समस्त पद का उत्तरपद प्रधान हो तथा पूर्वपद व उत्तरपद में उपमानउपमेय अथवा विशेषणविशेष्य संबंध हो, कर्मधारय समास कहलाता है।

पहचान: विग्रह करने पर दोनों पद के मध्य में ‘है जो‘,’के समान‘ आदि आते है।

विग्रहसमस्त पद
लाल है जो मणिलालमणि
महान है जो देवमहादेव
चंद्र के समान मुखचंद्रमुख
कमल के समान चरणचरणकमल
परम है जो आनंदपरमानंद
मृग के समान  नयनमृगनयन
कमल के समान  नयनकमलनयन
नीला है जो कंठनीलकंठ
महान है जो पुरुषमहापुरुष
क्रोध रूपी अग्निक्रोधाग्नि
देह रूपी लतादेहलता
आधा है जो मराअधमरा
कनक की-सी लताकनकलता

(4) द्विगु समास (Numeral Compound)

जिस समस्त पद का पूर्वपद संख्यावाचक विशेषण हो, वह द्विगु समास कहलाता है। इसमें समूह या समाहार का ज्ञान होता है।

विग्रहसमस्त पद
चार राहों का समूहचौराहा
नौ रात्रियों का समूहनवरात्र
सात सिंधुओं का समूहसप्तसिंधु
तीन रंगों का समूहतिरंगा
सात दिनों का समूहसप्ताह
दो पहरों का समूहदोपहर
तीनों कोणों का समाहारत्रिकोण
तीनों लोकों का समाहारत्रिलोक
सात ऋषियों का समूह पाँच मढ़ियों का समूहसप्तऋषि/सप्तर्षि पंचमढ़ी

(5) द्वंद्व समास (Copulative Compound)

जिस समस्त पद के दोनों पद प्रधान हो तथा विग्रह करने पर ‘और‘, ‘अथवा‘, ‘या‘, ‘एवं‘ लगता हो। वह द्वंद्व समास कहलाता है।

जैसे: – पहचान: दोनों पदों के बीच प्रायः योजक चिह्न (-) Hyphen का प्रयोग।

विग्रहसमस्त पद
नदी और नालेनदी-नाले
पाप और पुण्यपाप-पुण्य
ठंडा या गरमठंडा-गरम
छल और कपटछल-कपट
खरा या खोटाखरा- खोटा
नर और नारीनर-नारी
राजा और प्रजाराजा प्रजा
गुण और दोषगुण-दोष
ऊँच या नीचऊँच-नीच
आगे और पीछेआगे पीछे
सुख और दुःखसुख-दुःख
अपना और परायाअपना-पराया
राधा और कृष्णराधा-कृष्ण
देश और विदेशदेश-विदेश

(6) बहुव्रीहि समास (Attributive Compound)

जिस समस्त पद में कोई पद प्रधान नहीं होता, दोनों पद मिल कर किसी तीसरे पद की ओर संकेत करते है, उसमें बहुव्रीहि समास होता है, जैसे- ‘नीलकंठ‘, नीला है कंठ जिसका अर्थात् शिव। यहाँ पर दोनों पदों ने मिल कर एक तीसरे पद ‘शिव‘ का संकेत किया, इसलिए यह बहुव्रीहि समास है।

समस्त पदविग्रह
पीतांबरपीत है अंबर जिसका (कृष्ण)
चौलड़ीचार हैं लड़ियाँ जिसमें (माला)
चतुर्भुजचार हैं भुजाएँ जिसकी (विष्णु)
प्रधानमंत्रीमंत्रियों में प्रधान है जो (प्रधानमंत्री)
लंबोदरलंबा है उदर जिसका (गणेश)
दशाननदस हैं आनन जिसके (रावण)
अनहोनीन होने वाली घटना (कोई विशेष घटना)
गिरिधरगिरि को धारण करने वाला है जो (कृष्ण)
विषधरविष को धारण करने वाला (सर्प)
मृगेंद्रमृगों का इंद्र (सिंह)
घनश्यामघन के समान श्याम है जो (कृष्ण)
मृत्युंजयमृत्यु को जीतने वाला (शंकर)
पंकजपंक में पैदा हो जो (कमल)
त्रिलोचनतीन हैं लोचन जिसके (शिव)
चक्रपाणिचक्र है पाणि में जिसके (विष्णु)
चंद्रमौलिचंद्र है मौलि पर जिसके (शिव)
महावीरमहान वीर है जो (हनुमान)

कर्मधारय और बहुव्रीहि समास मे अंतर

इन दोनों समासों में अंतर समझने के लिए इनके विग्रह पर ध्यान देना चाहिए। कर्मधारय समास में एक पद विशेषण या उपमान होता है और दूसरा पद विशेष्य या उपमेय होता है; जैसे– ‘नीलगगन‘ में ‘नील’ विशेषण है तथा ‘गगन’ विशेष्य है। इसी तरह ‘चरणकमल‘ में ‘चरण’ उपमेय है और ‘कमल’ उपमान है। अतः ये दोनों उदाहरण कर्मधारय समास के है।

बहुव्रीहि समास में समस्त पद ही किसी संज्ञा के विशेषण का कार्य करता है।

उदाहरण: – ‘चक्रधर‘ चक्र को धारण करता है जो अर्थात् ‘श्रीकृष्ण‘।

नीलकंठ– नीला है जो कंठ – कर्मधारय समास

नीलकंठ – नीला है कंठ जिसका अर्थात् शिव – बहुव्रीहि समास।

लंबोदर – मोटे पेट वाला – कर्मधारय समास।

लंबोदर – लंबा है उदर जिसका अर्थात् गणेश – बहुव्रीहि समास।


द्विगु और बहुव्रीहि समास में अंतर

द्विगु समास का पहला पद संख्यावाचक विशेषण होता है और दूसरा पद विशेष्य होता है जबकि बहुव्रीहि समास में समस्त पद ही विशेषण का कार्य करता है।

उदाहरण: –

चतुर्भुज– चार भुजाओं का समूह – द्विगु समास।

चतुर्भुज- चार है भुजाएँ जिसकी अर्थात् – विष्णु – बहुव्रीहि समास।

पंचवटी– पाँच वटों का समाहार – द्विगु समास।

पंचवटी- पाँच वटों से घिरा एक निश्चित स्थल अर्थात दंडकारण्य में स्थित वह स्थान जहाँ वनवासी राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ निवास किया – बहुव्रीहि समास।

दशानन – दस आननों का समूह – द्विगु समास।

दशानन – दस आनन है जिसके अर्थात् रावण – बहुव्रीहि समास।


द्विगु और कर्मधारय में अंतर

द्विगु का पहला पद हमेशा संख्यावाचक विशेषण होता है जो दूसरे पद की गिनती बताता है जबकि कर्मधारय का एक पद विशेषण होने पर भी संख्यावाचक कभी नहीं होता है।

द्विगु का पहला पद ही विशेषण बनकर प्रयोग में आता है जबकि कर्मधारय में कोई भी पद दूसरे पद का विशेषण हो सकता है।

उदाहरण: –

नवरत्न – नौ रत्नों का समूह – द्विगु समास

चतुर्वर्ण – चार वर्णों का समूह – द्विगु समास

पुरुषोत्तम – पुरुषों में जो है उत्तम – कर्मधारय समास

रक्तोत्पल – रक्त है जो उत्पल – कर्मधारय समास


समास निर्णय की समस्या

जब परीक्षक ‘शब्द‘ देते है और उसमें समास को चिह्नित करने के लिए परीक्षार्थी से कहते है, तब परीक्षार्थी के लिए समास-निर्णय की समस्या उठ खड़ी होती है। कारण यह कि समास-विशेष का निर्णय विग्रह से होता है। परिणामतः परीक्षार्थी शब्द का कोई भी विग्रह करने के लिए स्वतंत्र होता है। इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है, जैसे –

विद्याधन

विद्याधन का छ: तरह से विग्रह किया जा सकता है – विद्या से (के द्वार) अर्जित धन (तृतीया तत्पुरुष), विद्या के लिए धन (चतुर्थी तत्पुरुष), विद्या का धन (षष्ठी तत्पुरुष), विद्यारूपी धन (कर्मधारय), विद्या और धन (द्वन्द्व), विद्या है धन जिसका वह, सरस्वती (बहुव्रीहि )।

 

यदि परीक्षक प्रश्न में स्वतंत्र ‘शब्द‘ की जगह वाक्य में प्रयुक्त शब्द यानी ‘पद‘ में समास बताने को कहे तो यह समस्या नहीं उठेगी, क्योंकि वाक्य में प्रयुक्त होने पर ‘शब्द‘ सीमित होकर ‘पद‘ बन जायेगा और पद का एक ही विग्रह होगा यानी दुविधा की स्थिति नहीं रहेगी जैसे –

वसंत पंचमी के दिन विद्याधन की पूजा की जाती है (विद्या है धन जिसका, अर्थात् सरस्वती- बहुव्रीहि समास)।

 

विद्याधर शर्मा की समृद्धि का राज विद्याधन ही है (विद्या से अर्जित धन- तत्पुरुष)। विद्याधन (विद्यारूपी धन-कर्मधारय समास) की चाह रखने वाले को विद्याधन (विद्या है धन जिसका, अर्थात सरस्वती- बहुव्रीहि समास) की पूजा करनी चाहिए।

 

मैंने एक पीताम्बर खरीदा (पीला वस्त्र-कर्मधारय समास)। मैंने पीताम्बर की पूजा की (पीत है अम्बर जिसका, अर्थात् विष्णु – बहुव्रीहि समास)।